भगवान दु:ख क्यों
देता है.......................
गुरू चरित्र में सबसे आखरी पन्ने
पर भगवान दत्तात्रेयजी ने कहा है कि
आप किसी से भी ईर्ष्या द्वेश नहीं करें सब में परम पिता परमात्मा याने स्वयंभू के दर्शन
करना सीखे इससे सब चीजे सही होगी आप
पूछोगे कैसे ....... देखिए यदि आपने सब में ईश्वर को देखना सभी से प्रेम करना याने
किसी से भी ईर्ष्या नहीं करना सीख लिया या आचरण में ले आये तो आपको पांचों मद, लोभ, मद, मत्सर, अहंकार कभी
घेरेंगे नहीं मतलब कुछ भी अच्छा हुआ वह भी प्रभु आपने ही किया क्योंकि सब में आप
ही हो स्वयं ने भी कुछ किया तो प्रभु आपने ही किया यदि त्रुटिवश कोई भूल हो जाती है
तो क्षमायाचना करते हुए महाप्रभु अपने इष्टदेव से करबद्ध होकर विनम्रता से उनके सामने
सिर झुकाकर अपनी भूल की क्षमा मांगे वह इतने दयालू है कि आपको अवश्य क्षमा कर देंगे
अब बताईये आपने किया उसका श्रेय भी ईश्वर को आपने नहीं किया उसका श्रेय भी ईश्वर
को तो लालच या अहंकार का प्रश्न ही नहीं उठता. वैसे मैं स्वयं बहुत अदना सा ईश्वर
का एक अंश मात्र मानव का रूप लेकर जन्मा हूं मुझसे इस लेख में यदि कोई ऐसी बात आपको
लगती है कि वह गलत है तो आप स्वयं भी परम पिता परमात्मा का ही अंश हो मैं आपमें भी
स्वयंभू के ही दर्शन कर रहा हूं आप जिस समय
इसे पढोगे तो मेरी किसी भी भूल को अवश्य क्षमा करोंगे बोलो हां ......
अब मैं मेन बात का लेकर आता हूं आज का अपना विषय है भगवान दुख क्यों देता
है ..... आप स्वयं अपने परिवार में देखना कि मां बाप हमेंशा सबसे प्यार करते है और
कई बार आपने देखा होगा कि मां बाप उसे ज्यादा डांटते है मारते है जो सहनशील होता
है और वह इसी कारण जीवन में उन्नति के शिखर पर पहुंचता है। वैसे ही ईश्वर भी जो सहनशील
या जिस पर उस स्वयंभू की विशेष कृपा दृष्टि होती है उसे ही कष्ट प्रदान करता है क्यों कि उसे पता
है कष्ट दे भी मैं रहा हूं उसे निवारण भी मैं ही करूंगा और उसमें आपको पता भी चलने
नहीं देते है वे स्वयं इतने दयालू है आप कब
उस कष्ट से बाहर आ जाते हो आपको पता ही नहीं होता और आप उस स्वयंभू का आभार और कोटि कोटि धन्यवाद करते हो। और कहते हो प्रभु आपकी बडी कृपा इस चीज से आपने
निकाल लिया इसी प्रकार मुझ पर मेरे परिवार
पर मेरे माता पिता भाई बहन पत्नी पुत्र पुत्री
पडोसी नातेदार रिश्तेदार हितचिंतकों पर भी कृपा बरसाना मेरे दत्त सांई शिव शंभो.......
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